(Photo courtesy: Bibartan Ghosh.)
खुद के साथ समय बिताने का मतलब ये नहीं होता कि आप लोगों से दूर रहना पसंद करते है, बल्कि इसके मायने ये है कि आपको अपने खयालों में खोना अच्छा लगता है. इससे आप अपने आपको बेहतर तरीके से जान पायेंगे. हमें दोस्तों के साथ और अपने आप के साथ वक्त बिताने की ज़रुरत होती है. दोनों के अपने फायदे है. दोस्तों के साथ रहने से आपको एहसास होता है कि आप किसी बिरादरी का या कहिये एक समाज का हिस्सा है; जबकि खुद के साथ रहना आपको ये जानने में मदद करता है कि आप कौन है.
मान लीजिये ज़िन्दगी एक सफ़र है; हम सब अपनी-अपनी मंज़िल की तलाश में है. और हां हम अकेले नहीं है, एक हुजूम है जो हमारे साथ चलता है. आपको ये तय करना है कि आप इस भीड़ का हिस्सा बनना चाहते है या अपनी अलग पहचान बनाना चाहते हैं. देखिये वक्त तेज़ी से चल रहा है, माफ़ कीजिये, दौड़ रहा है और जीने का करीना बदल रहा है. तो इस भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी में बीच राह रूककर सफ़र का मुआयना करना बहुत ज़रूरी है. मुड़कर देखिये कितना रास्ता पार कर चुके है, और आगे के सफ़र की तैयारी कीजिये.
खुद से प्यार कीजिये, क्योंकि मेरा मानना है कि लोग आपसे तब तक प्यार नहीं करेंगे जब तक आप खुद से प्यार करना नहीं सीखते. अकेले चाय- कॉफ़ी पीजिये, सुबह-सुबह सैर पर जाइए, बिना कारण मुस्कुराइए या फिर अपनों के साथ बिताए खूबसूरत पलों को याद कीजिये. ये कुछ तरीके है जिससे आप अपने मन की battery charge कर सकते है. तन्हाई में आपके ख़याल खुली उड़ान भरते है. आप पर किसी प्रकार का pressure नहीं होता. ये वो समय है जब आपका असल व्यक्तित्व और सच्चे विचार बाहर आते हैं. इस एहसास का अपना मज़ा है. महसूस कीजिये, बयान करने को शब्द कम है.
चलते चलते...
दिल तो दिल है दिल की बातें समझ सको तो बेहतर है,
दुनिया की इस भीड़ में खुद को अलग रखो तो बेहतर है...
खामोशी भी एक सदा है अक्सर बाते करती है,
तुम भी इसको तन्हाई में कभी सुनो तो बेहतर है...
और हाँ, अपना ख़याल रखिये! :)
12 comments:
Nice post yaar ... kisi film mein ek angrezi dialogue suna tha jo kuch isi tarah ke khayalaato ko bayaan karta hai .. it goes somethin like this .."You are all what you've got , if you'll compromise with that too , then whats left ..."
A refreshing read like most of ur posts. Simple, lucid, with the right sweetness of innocence, a pinch of salt of satire makes it just a perfect read.
A very interesting thought captured. I completely concur as I have this unusal love for my own company irrespective of the fact that there may be many around me. I crave for that usually, like u rightly pointed out its not coz dislike for people, but its more of a rejuvenating exercise when one gets to be with oneself and create that perfect ambience- no holds bar, no checks, no pretentions, no pressures, just u and ur thoughts- its ecstacy.
Awesome read b4 I wrap up my day today. Cheers boss :)
bhai mein toh roz KHUD KHUSHI karta hoon.....
isiliye apni zindagi se khush hoon......
:D :D :D :D :D
@ saurabh.. thank you! i'll reciprocate that line with a sher..
क्यूँ अपनी तरह जीने का अंदाज़ छोड़ दे,
और है ही क्या हमारे पास इस अंदाज़ के सिवा.. :)
@ kk, thanks a lot buddy! your feedback is something i always look forward to! :)
@ gitesh.. wo mujhe pata hai! aur mujhe uske tareeke bhi pata hai! :P thanks! :)
kya baat hai sameer,
rangon me chatakh badhti jaa rahi hai, aur gehraoge yeh vishwas hai.kissi shayar ka sher barbas yaad aa gaya.
is sehar me sab se mulaqat ho gayi
aaj jee chahta hai khud se mila jaye
prakash
damm good sam!!
n i wud actly lyk to thank u fr making me read dis...i felt smthin ws going wrong in my lyf...nw i knw wat it is...
@ prakash bhai.. बहुत बहुत शुक्रिया जनाब! और वो शेर बेहतरीन है! :)
@ nandita.. if that's so, i think that's the best outcome of my post! :)
Thanks man, this is the first time my work has been used by a 3rd person. This will always be a special post for me.
Waiting for you to narrate the post to me.
your command over english and hindi is equally good man!! though this was a heavy dose, the write up was really insightful. keep up the good work! expecting the next post in hindi! :D
--dipti.
just came here randomly....really nice blog..
n as for this topic of yours...
i can only quote a beautiful poem by harivansh rai bachchan which says....
jeevan ki aapa dhapi mai kab wakht mila
kuch der kahi par beth kabhi main soch saku
jo kiya kaha mana usme kya bura bhala.....
'my time' was indeed always imp now it holds lot of values too.. i can totally relate n understand this... a very good write up! its truly imp to love yourself to make others love you! totally agreed! :-) keep writin more lik this!
Post a Comment