Saturday, March 20, 2010

--- माँ ---


फर्ज़ कीजिये आप मुसीबत में हैं, दुखी हैं या किसी बात को लेकर चिंतित हैं (वैसे मैं दुआ करूँगा ऐसा हो) मगर सोचिये ऐसे हालात में आप किसके पास रहना चाहेंगें? मेरा ख़याल है आप में से अधिकतर लोग इस सवाल का जवाब "माँ" ही देंगे हमारी ज़िंदगी के ज़्यादातर रिश्तों का यही अंजाम होता है- फूल खिलता है, महकता है, बिखर जाता है लेकिन माँ का अपने बच्चों से रिश्ता कुछ ऐसा है जिसका फूल जिंदगी भर महकता है माँ तो जिस्म में साँसों-सी रहती है, लहू बनके रगों में बहती है; जिंदगी बनके हमारे दिलो में धड़कती है

हिन्दू धर्म में देखेँ तो हर देवी के नाम के आगे "माँ" लगा है : माँ दुर्गा, माँ सरस्वती, माँ लक्ष्मी, माँ काली। शायद माँ का खिताब लग जाने से देवी और भी बड़ी हो जाती है। इस्लाम की बुनियाद यही है कि जो मज़हब के उसूल मानेगा उसे जन्नत नसीब होगी। कुरआन में इस बात का ज़िक्र है कि जन्नत माँ के कदमों के नीचे है; यानी माँ जन्नत से भी बड़ी है।

दुनियाभर के गिरजाघरों में लोग माँ मरियम से फ़रियाद करते है कि वो उनकी दुआएँ खुदा तक पहुचाएँ। यहाँ वो देवी तो नहीं कहलाती मगर संतों में सबसे बड़ी संत है। ईसा की माँ मरियम तो एक मिसाल है, उन्होंने अपने बेटे को सलीब पर चढ़ते देखा था। वो दुनिया के हर बच्चे की हिफ़ाज़त चाहतीं है। पाप करनेवाले डरते है की शायद उनकी फ़रियाद न सुनी जाये; लेकिन माँ मरियम तो माँ ही है, वो सबकी फ़रियाद सुनती है

किस्सा कुछ साल पुराना है- चेन्नई के पास एक गाँव में प्रोफेसर गफूर आकर रहने लगे थे। वे कैम्ब्रीज यूनिवर्सिटी से पढ़ाकर वतन लौटे थे। उनकी शादी नहीं हुयी थी, वो घर में एक काम करनेवाली महिला के साथ रहते थे। जब प्रोफेसर की मौत हुयी तो गाँव के लोग उन्हें दफनाने पहुंचे। तभी नौकरानी ने बताया कि गफूर साहब ने बीस सालों से अपनी माँ की लाश को लेप लगाकर अपने घर में ही रखा था। वो उसे दफनाते इसीलिए नहीं थे कि माँ आँखों से ओझल हो जाएगी। उनका मानना था कि बोलती नहीं तो क्या हुआ, माँ लेटी हुयी दिखाई तो देती है।

माँ कुछ ऐसी होती है कि जब तक ज़िंदा रहती है बूढा आदमी भी खुदको बच्चा समझता है। माँ उस पेड़ कि तरह होती है जो तमाम जिंदगी फल, फूल और छाँव देता है और बदले में कभी कुछ नहीं मांगता। यकीनन माँ मोहब्बत से शिद्दत कि आखरी मंजिल है।
चलते चलते, मुन्नवर राणा का यह शेर-

हमारे चन्द गुनाहों की सज़ा भी साथ चलती है,
हम अब तन्हा नहीं चलते, दवा भी साथ चलती है।
अभी ज़िंदा है मेरी माँ मुझे कुछ नहीं होगा,
मैं जब घर से निकलता हुँ, दुआ भी साथ चलती है...