Wednesday, October 20, 2010

रावण, नेताजी और मैं

नज़्म, ग़ज़ल, हिंदी किताबत और अंग्रेजी articles से हटकर, काफी समय बाद हिंदी कविता लिखी है; उम्मीद है आपको पसंद आए. इस में अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल उनके effect के लिए किया है, क्यूंकि उन शब्दों के हिंदी अनुवाद मुझे उतने प्रभावशाली नहीं लगे. और वैसे भी, ज़माना Hinglish का है!




रावण दहन देखने पहुंचा मैं मैदान में,
काफी लोग आये थे लंकेश्वर के सम्मान में..
Chief-guest था शहर का एक नेता,
जो मौका मिलने पर पुतले से भी वोट मांग लेता..

रावण के पुतले को लगाने आग, 
जैसे ही मंत्रीजी ने 
माचिस की  तिली जलाई;
पुतले की आत्मा ज़ोर से चिल्लाई, 

" ऐ मेरे कलयुगी भाई!
अपने ही हाथों से,
 मुझे आग मत लगाओ.. 
बड़े भैया होकर
अनुज को न जलाओ! 

हम दोनों रावण के प्रतीक हैं तो क्या हुआ,
हमारे पास कुर्सी है, power है, नाम है..
अपने ही बिरादरों को मारना-काटना-जलाना
राक्षसों का नहीं, इन्सानों का काम है..

आपकी मेहरबानी से नेताजी,
हमारी राक्षसी संस्कृति
आज भी लोगों में ज़िंदा है..
और हमारे half-murder के जुर्म में,
राम आज तक शर्मिन्दा है..

इसीलिए मेरे जात-भाई,
आग लगाना भूल जाइए..
एक नया धार्मिक मुद्दा उठाइये,
और नए झूठोंवाला manifesto बनाइये!

बिहार- U.P. में election है,
तुम राजनीतिक रोटियाँ सेको..
इन्सानियत के राम को जहां देखों,
जड़ समेत उखाड़ फेकों!

फ़िक्र नहीं, फ़क्र करो यही बात,
हमारी जाति का पताका फहराएगी..
बिना quota और reservation के,
सारी facilities मुहैय्या कराएगी..
और हिन्दुस्तान की परिभाषा,
अवश्य सार्थक हो जायेगी! "

...फिर नेता ने विभीषण का किरदार निभाया,
और बड़ी शान से रावण का पुतला जलाया.
इस वाकिये से तब मैं ऊब गया,
और गहरी सोच में डूब गया..

रावण के कई पुतलें
हम हर साल जलाते है,
मगर उन सामाजिक रावणों का क्या
जो mushroom की तरह उग आते है??

हम उस दौर में है जहां भगवान् का जन्मस्थान,
देश का कानून बताता है..
एक को तो श्री राम मार गए थे,
अब बाकियों का ख़याल सताता है...